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अनुभूति में सौरभ राय भगीरथ की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
गाना गाया
चप्पल से लिपटी चाहतें
जूते
भौतिकी
संतुलन

 

जूते

इन भूरे जूतों ने
तय किए हैं कितने ही सफ़र !
चक्खा है इन्होंने समुद्र का खारापन
थिरके हैं ये पहाड़ी लोकगीत पर
और फिसले हैं बर्फ की ढलान पर
मेरे संग।

इन्होंने सहर्ष पिया है मेरे पैरों का पसीना
सही हैं ठोकरें सिर पर
गिरने से बचाया है मुझे अनगिनत बार।
इनकी छाती पर पहाड़ी चट्टानों की रगड़ है
इनके घुटनों में दबे हैं दुर्गम जंगलों के काँटें।
इनकी सिलवटों में दर्ज़ है
मेरी अनगिनत यात्राओं का लेखा जोखा।
मेरे जूतों नें मुझे गढ़ा है
जैसे दुनियाभर के तमाम जूतों ने मिलकर
जोते हैं खेत
उगाई हैं फसलें
ढोए हैं पहाड़
जीतीं हैं जंग !

इन बदबूदार जूतों में
दुनियाभर की तमाम ख़ुशबूदार किताबों से
ज़्यादा इतिहास लिक्खा है।
दो भूरे जूतों ने मुझे पहन रक्खा है
इनके लिये मैं महज़
एक जोड़ी पैर हूँ।

१ अप्रैल २०१३

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