अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शबनम शर्मा की रचनाएँ-

नई रचनाएँ-
अमानवता
आज़ादी
खुशबू
तस्वीर
प्रश्न
बाबूजी के बाद
मजबूरी
रंग
रिश्ते

कविताओ में-
इक मा
इल्ज़ाम
बूढ़ी आँखें
बेटियाँ
मकान
माँ
मुसाफ़िर
रंग
सपना
सिर्फ़ तुम हो

 

तस्वीर

कल तुम्हारे बचपन की
तस्वीर देखते ही
कई बीते पल आँखों के सामने
आकर झूल से गए
तुम्हारा रात भर में कई बार जगना,
बार-बार बिस्तर गीला करना,
फिर धीरे-धीरे बढ़ना,
शाला की ओर कदम बढ़ाना,
तुम्हें हाथ पकड़कर लिखवाना,
इसी क्रम में, कई रातें जगना,
तुम्हें पथभ्रष्ट होने से रोकना,
और तुम्हारा रूठ जाना,
आज अचंभित होता मन,
समय कैसे पंख लगाकर उड़ गया,
मुझे ये सब सपना-सा
लगता, पर शायद माँ बनना, ये सब सहना,
अच्छा लगता हर स्त्री को, क्योंकि
औरत की ज़िंदगी का यथार्थ है
माँ बनना।

24 अप्रैल 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter