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अनुभूति में शीतल श्रीवस्तव की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
एहसास
कल्पना
कैसे कह दूँ
जी हाँ मैं कवि हूँ
बहस
बहुत हो चुका
गीत लिख कर
पर इतना कैसे
प्रगति
पुलिस और रामधनिया
सहजता

संकलन में
ज्योति पर्व - दीपकों की लौ

 

पुलिस और राम धनिया

आज बहुत भिनसहरे
राम धनिया को घर मे से
पुलिस पकड कर ले गयी
रामधनिया एक सपना ले कर
बैठा रहा था रात भर
भूख से नींद न आने पर
कि गांव के साहूकार को
लूट कर
एक दिन
रोटी और नमक के साथ
प्याज भी खांऊगा
पुलिस को यह मालूम था
माहवारी बैठक में
मनो वैज्ञानिक विश्लेषण से
यह गूढ निष्कर्ष निकला था
कि राम धनिया के जेहन में
बहुत बडा डाकू पैठा है
इलाके के दरोगा ने
साहूकार के यहाँ राम धनिया को
जवाब देते सुना था
और
किसी भी चुनाव त्यौहार मे
राम धनिया को
जश्न मनाते इठलाते
नही पाया था
राम धनिया की माई
पडोसन से कहती है
बचवा को पुलिस पकड कर ले गई
सुना है जेहल में
दो जून का खाना तो मयस्सर हो जाता है
उसके लौट कर आने पर
अपने बेटे को शायद न पहचाने
राम धनिंया के अन्दर पैठा डाकू ही
पहली बार
अपने घर का दरवाजा खटखटाएगा
और
तबादले पर आया
इलाके का नया दरोगा
साहूकार से मुखबिरी मे
उसके घर का पता पूछेगा

१ दिसंबर २००१

 

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