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अनुभूति में शीतल श्रीवस्तव की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
एहसास
कल्पना
कैसे कह दूँ
जी हाँ मैं कवि हूँ
बहस
बहुत हो चुका
गीत लिख कर
पर इतना कैसे
प्रगति
पुलिस और रामधनिया
सहजता

संकलन में
ज्योति पर्व - दीपकों की लौ

 

प्रगति

सुनहरी धूप जाडे की
खिडकी से दिख रही
पेड अलसाये हैं
चुपके से कोने मे
एक कली खिल रही
स्वप्निल नींद के माहौल मे
अचानक सुबह हो गयी
झेल न सका पुरातन मन
सुनहरी धूप
आँख की किरकिरी बन गयी ।

१ दिसंबर २००१

 

 

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