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अनुभूति में शेखर मलिक की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
कविता
तुम्हारा मेरे साथ होना
दोपहर की बारिश
प्रश्न से विस्मय तक ! स्त्री
वह

 

तुम्हारा मेरे साथ होना

कुछ नरम धूप में
और किसी नन्हे से पौधे की
बारीक सी पत्तियों पर चमकती रेखा की तरह
इतना धीमा, इतना सुरीला
और बेहद नाजुक,
फुसफुसाहट सी कोमल...
यह तो तुम्हारा मेरे साथ होना है...
उपलब्धि की मानिंद !
मेरे जीवन में उत्सव की तरह शामिल हो तुम...

तुम्हारी मौजूदगी है-
चौके में, बिस्तर पर, स्टडी कक्ष में...
यह जो तुम हो,
ऐन मेरी परछाई की बगल में खड़ी...
तुम ही हो ना !
यह, जैसा बारिश की गंध और
गीली मिट्टी की फाँकों से झाँकती
दूब की तरह एकदम... पहली...
तुम...!

तुम्हारा होना एक शगुन है !
जैसे मैं याद करता हूँ...
पानी, रंग, धूप, गंध, स्पर्श...
और पाता हूँ तुम्हारे ही इर्द-गिर्द
एक वलय-वृत में
खुद को...
अपनी सभी
इंद्रियों और चेतनता के साथ
बंधा हुआ... पाता हूँ...!

तुम हो तो, यह सत्य है
जैसे दुख, फिर सुख, फिर...
तुम्हारा होना,
मेरी आस्था है जिंदगी में...

७ जनवरी २०१३

 

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