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अनुभूति में शेखर मलिक की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
कविता
तुम्हारा मेरे साथ होना
दोपहर की बारिश
प्रश्न से विस्मय तक ! स्त्री
वह

 

वह

उसका खिला हुआ दुधिया
चेहरा देखकर
दुःख अपने मोर्चे से हट जाता है...

मैं हडबडाकर सुख के कतरों
की वर्ग पहेली सुलझाने लगता हूँ
और पिछड़ जाता हूँ उसके कौशल और,
उसकी तेजी से !

एक करिश्माई करतब की मानिंद
वह दुःख बटोर कर
सुख के सफेद परिंदे में बदल देती है.

मैं उसे दूर तक
धूप में चलकर आते देखता हूँ...
मेरे नजदीक,
उसकी वह चाल खत्म होने तक...

वह आते ही कहती है...
तुम्हें हँसना चाहिए !

मैं उसके दुधिया चेहरे से
हँसी के गुलाबी चकत्तों की चमक सोख कर
अपने चेहरे पर मुस्कान उगा लेता हूँ

रोज वह मेरे भीतर
सुख बोती है,
हँसी के फव्वारे से उसे सींचती है,
वह मेरे पूरे वजूद को किसी
मौसमी गुल की तरह खिला देना चाहती है...

और मैं चाहता हूँ सिर्फ यह
कि आखिरकार
उस पर कोई ढंग की कविता भर लिख सकूँ...!

७ जनवरी २०१३

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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