अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में श्यामल सुमन की रचनाएँ-

मुक्तक में-
चेतना (चार मुक्तक)

दोहों में-
दोहों में व्यंग्य
नेता पुराण

हार जीत के बीच में

अंजुमन में-
अभिसार ज़िंदगी है
कभी जिन्दगी ने
जीने की ललक
बच्चे से बस्ता है भारी
बाँटी हो जिसने तीरगी
मुझको वर दे तू
मुस्कुरा के हाल कहता
मेरी यही इबादत है
मैं डूब सकूँ
रोकर मैंने हँसना सीखा
रोग समझकर
साथी सुख में बन जाते सब
हाल पूछा आपने

कविताओं में-
आत्मबोध
इंसानियत
एहसास
कसक
ज़िंदगी
द्वंद्व
दर्पण
फ़ितरत 
संवाद
सारांश
सिफ़र का सफ़र

 

सारांश

मन-दर्पण को जब-जब देखा,
उलझ गई खुद की तस्वीरें।
चेहरे पे चेहरों का अंतर,
याद दिलाती ये तस्वीरें।।

पात्रों सा निज- रूप सजाता,
रंगमंच जाने से पहले।
प्रति पल रूप बदलता मेरा, और बदलती है तक़रीरें।

निज-स्वरूप की नित तलाश में,
हाथ लिए दीपक मैं फिरता।
सच आँखों का छुप नहीं पाता, लाख करी मैंने तदबीरें।

जान लिया खुद को जिसने भी,
प्रेम-शांति के गीत वो गाया।
फिर भी नहीं बदल पाया है, मानवता की भाग्य-लकीरें।

सुमन के होने का मतलब क्या,
खुशबू ही जब सिमट रही हो।
अर्थ मनुज का व्यर्थ हो रहा, तोड़ जो शेष बची ज़ंजीरें।

16 मई 2006

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter