अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सुरेन्द्र प्रताप सिंह की
रचनाएँ -

छंद मुक्त में-
खामोश हो जाता हूँ मैं
ज़िंदगी कविता या कवयित्री
पत्थर
ये सिमटते दायरे
विचार
श्रद्धा

 

 

खामोश हो जाता हूँ मैं

मस्तिष्क रूपी समंदर में
शब्द तैरते रहते हैं
आता है ज्वार-भाटा
और शब्द
डूब जाते हैं
खो जाते हैं लहरों में
और
खामोश हो जाता हूँ
मैं !

३ मई २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter