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अनुभूति में सुरेन्द्र प्रताप सिंह की
रचनाएँ -

छंद मुक्त में-
खामोश हो जाता हूँ मैं
ज़िंदगी कविता या कवयित्री
पत्थर
ये सिमटते दायरे
विचार
श्रद्धा

 

विचार

बस निकल गयी सारी हेकड़ी
कहाँ गए वो सारे आदर्श,
वो बड़ी बड़ी बातें,
जो अभी तक उमड़-घुमड़ रही थीं
मस्तिष्क में
बस एक कलम देखकर ही
हो गए सब विचार
छूमंतर !
जाओ, भागो
कहाँ तक जाओगे,
लौटकर फिर यहीं आओगे
और अबकी बार
छोडूँगा नहीं, उतार ही लूँगा
तुम्हे कागज़ पर,
करके रहूँगा तुम्हें
लिपिबद्ध !

३ मई २०१०

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