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अनुभूति में सुरेन्द्र प्रताप सिंह की
रचनाएँ -

छंद मुक्त में-
खामोश हो जाता हूँ मैं
ज़िंदगी कविता या कवयित्री
पत्थर
ये सिमटते दायरे
विचार
श्रद्धा

 

 

ज़िन्दगी : कविता या कवयित्री

सोचता हूँ पल प्रति पल
कि ज़िन्दगी एक कविता है
या, स्वयं एक कवयित्री !

जन्म से मरण तक
न जाने कितने उतार-चढ़ाव,
कितने हादसे, कितने ग़म, कितनी खुशियाँ !
कभी इच्छाओं की मौत
कभी मौत की इच्छा !
कभी ह्रदय को बहलाते क्षण
कभी दहलाते !

संदेह, विश्वास, भय, प्रेम,
वात्सल्य, करूणा, ममता आदि
रसों और भावों को
अपने में संजोए
ज़िन्दगी एक कविता ही तो है !
परन्तु कौन, किस पर,
कैसे लिखता है?
क्या स्वयं ज़िन्दगी ?
शायद हाँ !
शायद नहीं !

फिर बार-बार
सोचता हूँ पल प्रति पल
कि ज़िन्दगी एक कविता है
या स्वयं एक कवयित्री ?
प्रश्न है अब तक
अनुत्तरित,
अनिर्णीत !

३ मई २०१०

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