अनुभूति में
उदय प्रकाश की
रचनाएँ—
छंदमुक्त में—
आँकड़े
उस दिन गिर रही थी नीम की एक पत्ती
एक अलग सा मंगलवार
गीतों में-
एक अकेले का गाना
ताना बाना
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आँकड़े
अब से तकरीबन पचास साल हो
गए होंगे
जब कहा जाता है कि गांधी जी ने
अपने अनुयायियों से कहीं कहा था
सोचो अपने समाज के आख़िरी आदमी के बारे में
करो जो उसके लिए तुम कर सकते हो
उसका चेहरा हर तुम्हारे कर्म में टँगा होना चाहिए तुम्हारी
आँख के सामने
अगर भविष्य की कोई सत्ता कभी यातना दे
उस आख़िरी आदमी को
तो तुम भी वही करना
जो मैंने किया है अंग्रेजों के साथ
आज हम सिर्फ़ अनुमान ही लगा सकते हैं कि
यह बात कहाँ कही गई होगी
किसी प्रार्थना सभा में या किसी
राजनीतिक दल की किसी मीटिंग में
या पदयात्रा के दौरान
थक कर किसी जगह पर बैठते हुए या
अपने अख़बार में लिखते हुए
लेकिन आज जब अभिलेखों को संरक्षित रखने की तकनीक इतनी विकसित
है
हम आसानी से पा सकते हैं उसका संदर्भ
उसकी तारीख और जगह के साथ
बाद में, उन्नीस सौ अड़तालीस की घटना का
ब्यौरा
हम सबको पता है
सबसे पहले मारा गया गांधी को
और फिर शुरू हुआ लगातार मारने का सिलसिला
अभी तक हर रोज़ चल रही हैं सुनियोजित गोलियाँ
हर पल जारी हैं दुरभिसंधियाँ
पचास साल तक समाज के आख़िरी आदमी की सारी हत्याओं का आँकड़ा कौन
छुपा रहा है?
कौन है जो कविता में रोक रहा है उसका वृत्तांत?
समकालीन संस्कृति में कहाँ छुपा है
अपराधियों का वह एजेंट?
१६ मार्च २००६
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