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अनुभूति में उदय प्रकाश की
रचनाएँ—

छंदमुक्त में—
आँकड़े
उस दिन गिर रही थी नीम की एक पत्ती
एक अलग सा मंगलवार

गीतों में-
एक अकेले का गाना

ताना बाना

 

एक अकेले का गाना

धन्य प्रिया तुम जागीं,

ना जाने दुख भरी रैन में कब तेरी अँखियाँ लागीं।
जीवन नदिया बैरी केवट, पार न कोई अपना
घाट पराया, देस बिराना, हाट–बाट सब सपना।
क्या मन की, क्या तन की,
किहनी अपनी अँसुअन पागी।

दाना–पानी, ठौर ठिकाना, कहाँ बसेरा अपना
निस दिन चलना, पल–पल जलना,
नींद भई इक छलना।
पाखी रूँख न पाएँ, अँखियाँ
बरस–बरस की जागी।

प्रेम न साँचा, शपथ न साँचा, साँच न संग हमारा
एक साँस का जीवन सारा, बिरथा का चौबारा।
जीवन के इस पल फिर तुम क्यों
जनम–जनम की लागीं।
धन्य प्रिया तुम जागीं,

ना जाने दुख भरी रैन में कब
तेरी अँखियाँ लागीं।


१६ मार्च २००६

 

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