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वर्ष दो हजार दस
वो बत्ती वो रातें
संवाद
सच
हादसे– (मुंबई और मंगलौर के बीच मन)

 

कल और आज के बीच

मैं चलूँ क्यों
मैं तो उड़ूँगीं
मैं कल का इंतजार भी न करूँगी
मैं आज हूँ
आज ही उड़ूँगी उस पार
नभ के वे सारे तारे अपने आंचल में समेट
जिन पर तुमने अंकुश लगाया है

जो भी है
आज ही है
कल हो न हो

७ मई २०१२

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