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कौन हूँ मैं
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वर्ष दो हजार दस
वो बत्ती वो रातें
संवाद
सच
हादसे– (मुंबई और मंगलौर के बीच मन)

  कौन हूँ मैं

इस बार नहीं डालने आम के अचार
खरीदनी बोतलें
डालनी धूप में
याद रखना एक-एक सामान

इस बार सर्दी के कपड़े
नहीं धोने हैं खुद
शिकाकाई में डाल कर
न ही करनी है चिंता
नीम के पत्ते ट्रंक के कोने में सरके या नहीं

इस बार नींबू का शरबत भी नहीं बनाना घर पर
कि खुश हों ननदें-देवरानियाँ
और मांगें कुछ बोतलें अपने लाडले बेटों के लिए

नहीं खरीदनी इस बार गार्डन की सेल से
कई साड़ियाँ
जो आएं काम साल भर दूसरों को देने में

इस साल कुछ अलग करना है
नया करना है
इस बार जन्म लेना है –पहली बार सलीके से
इस बार जमा करना है सामान
सिर्फ अपनी खुशी का
थोड़ी मुस्कान, थोड़ा सुकून, थोड़ी नजरअंदाजी

लेकिन यह प्रण तो पिछले साल भी किया था न।

७ जून २०१०

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