अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में वर्तिका नन्दा की रचनाएँ

नई रचनाओं में-
उत्सव
औरत ???
कल और आज के बीच
हसरतें

छंदमुक्त में-
आज
एक अदद इंतज़ार
एक था चंचल

एक ख्वाब की कब्रगाह
कौन हूँ मैं
झोंका जो आया अतीत की खिड़की से
नव वर्ष में
भूलना
मंगलसूत्र
वर्ष दो हजार दस
वो बत्ती वो रातें
संवाद
सच
हादसे– (मुंबई और मंगलौर के बीच मन)

 

वो बत्ती, वो रातें

बचपन में
बत्ती चले जाने में भी
गजब का सुख था
हम चारपाई पे बैठे तारे गिनते
एक कोने से उस कोने तक
जहां तक फैल जाती नजर
हर बार गिनती गड़बड़ा जाती
हर बार विश्वास गहरा जाता
अगली बार होगी सही गिनती
बत्ती का न होना
सपनों के लहलहा उठने का समय होता
सपने उछल-मचल आते
बड़े होंगे तो जाने क्या-क्या न करेंगें
बत्ती के गुल होते ही
जुगनू बनाने लगते अपना घेरा
उनकी सरगम सुख भर देती
पापा कहते भर लो जुगनू हथेली में
अम्मा हँस के पूछतीं
कौन-सी पढ़ी नई कविता
पास से आती घास की खुशबू में
कभी पूस की रात का ख्याल आता
कभी गौरा का
तभी बत्ती आ जाती
उसका आना भी उत्सव बनता
अम्मा कहती
होती है जिंदगी भी ऐसी ही
कभी रौशन, कभी अंधेरी
सच में बत्ती का जाना
खुले आसमान में देता था जो संवाद
उसे वो रातें ही समझ सकती हैं
जब होती थी बत्ती गुल।

७ जून २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter