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कविता बचती है

अक्सर
रातों मे जब
मैं, कागज, कलम मिलते हैं,
शब्दों में शब्द घुलते हैं
औचक ही मिल जाती हैं
खिड़की से झाँकती
मद्धिम रोशनी
और
विचारों के धवल बुलबुले उठते हैं
फिर बूँद-बूँद स्मृतियों की
स्याही रिसती है
कलम जब रुकती है
न बुलबुला
न मद्धिम रोशनी रहती है ,

सिर्फ....
कविता बचती है !


२ जनवरी २०११

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