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तुम्हारी हँसी

सुना है
तुम्हारी हँसी
संपूर्ण आकाश में रंग भर देती है
हरहराते–गरगराते बादल भी
अपना रास्ता बदल देते हैं
उग आते हैं बाग में असंख्य फूल
चाँद सितारों की तरह
सुना है
तुम्हारी हँसी
मिटा देती है
धरती की प्यास
और उसकी कोख में
धड़कने लगता है जीवन
सुना है
तुम्हारी हँसी
पेड़–पौधें को बना देती है उन्मत्ता
झूमने लगते हैं वे ऐसे
जैसे मतवाला हाथी
घूमता है जंगलों में
तुम्हारी हँसी का संगीत
सुनने के लिए व्याकुल लोग
पहाड़ो समुद्रों को लांघते
भटकते हैं
अमरनाथ से मक्का तक
पर तुम्हारी हँसी
बदल जाती है एक डरावने अट्टाहास में
और फिर
समुद्र आँखे लाल कर लेता है
हवाएँ भी उग्र हो जाती है
स्थिर होता है सब कुछ
कुछ क्षणों बाद
क्यों लगाते हो तुम
हँसी के बदले खौफ़नाक अट्टाहास
मैं सुनना चाहता हूँ
तुम्हारी हँसी
बोलो कब हँसोगे तुम?

१६ नवंबर २००५

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