अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में लाल जी वर्मा की रचनाएँ-

छंदमुक्त में
अकेला
उत्तिष्ठ भारत
मुझमें हुँकार भर दो
मेरे हमसफ़र
चार छोटी कविताएँ
समय चल पड़ा
सुनोगी
क्षणिकाएँ
मुक्तक

 

 

चार छोटी कविताएँ

१–मोहताज

मैं तेरा मोहताज नहीं ऐ मेरे रहमों–करम
फिर भी कुछ ऐसा सिलसिला रखना
इस आग की दरिया को जलाए रखना
हवाओं में इतना दम–खम भर दे
कि मैं बराबर उड़ता रहूँ
और क्यों न गंधक की बू वाली नदी
जलती रहे, बराबर ही सही
कभी भी उसमें गिर कर न जलूँ।

२–अपरिचित

मैं तो घर से निकला था
खाली हाथ और निःशब्द
पता नहीं, कौन कहाँ
थमा गया बंदूक,
किसने भर दी कंठों में
एक अंतहीन गुर्राहट
कौन रख गया कंधे पर लाश
घूम कर देखता हूँ आइने में
एक अपरिचित चेहरा।


३–भिखारी

भिखारी मर गया था
टूटे–फूटे खंडहर में
सभी ने जाकर देखा
क्या था उसके पास
कुछ नहीं मिला सिवा
फ्रेम में गढ़ी एक छाया
वह बाहर निकली, और
तब से मेरे आइने में आ
हँसती रहती है
मुझपर,
सब पर!


४–सड़कों के नाम

सन्नाटा छाया है
गोलियों की आवाज़ से
अभी–अभी यहाँ
दफना दिया गया
एक शब्द
एक आवाज़.
लहू के व्यापारियों से
पूछे तो कोई
कब तक देते रहेंगे नाम
हम
इन सड़कों को
"सफ़दर हाशमी का!

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter