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अनुभूति में लाल जी वर्मा की रचनाएँ-

छंदमुक्त में
अकेला
उत्तिष्ठ भारत
मुझमें हुँकार भर दो
मेरे हमसफ़र
चार छोटी कविताएँ
समय चल पड़ा
सुनोगी
क्षणिकाएँ
मुक्तक

 

 

मेरे हमसफ़र

मुझे मालूम है मेरे हमसफ़र
ज़िंदगी के आगोश में मौत
के साये चला करते हैं
फिर भी,
आज सजने दो सपनों को
जब शाम अनढली है
रात अनबुझी है
आसमां पर चाँद का टुकड़ा
दे रहा जिंदगी को आवाज़
ओस की बूँदों में, तिनकों के फलक पर
ज़िंदगी की सुबहो–शाम बसा करती है
फलसफा, जो हमने और तुमने
कहने की कोशिश की थी
उसी की कहानी लिखी जाती है।
प्यासे होठों पर
एक कतरा जाम का
जब मयस्सर होगा
शाम और भी रंगी हो बिखर जाएगी
सितारों के झुरमुट में, चाँद के साये तले
हम और तुम बातें कर लेंगे
बातें कुछ प्यार औ' मोहब्बत की
कुछ कहने की औ' कुछ सुनने की
चाँद कोशिश करेगा
तिरछी निगाहों से देखने की
पर प्यार के आगोश में हम,
पैबस्त हो छिप जाएँगे।
जिंदगी का सफर
कुछ इस तरह मन करता है जीने को
जहाँ गुदगुदी दूब हो ओस से नहाई
चाँद बिखेरता हो जहाँ सफेद चाँदनी
जहाँ सपनों का पुल हो,
और आशाएँ दीपक जलाए खड़ी हों राहों पर
जहाँ रात का अँधेरा उजागर होता हो
झिलमिलाते सितारों से,
और तनहा सफर तब्दील हो बारात में
हमसफ़र अगर तुम साथ हो।
प्यासे होठों की कसम
हम पूरा करेंगे ये सफर भी
जलते अंगारों पर पैर रख चलने में भी
अपना ही मज़ा है
सफर को अंजाम देने में भी
अपना ही मज़ा है
कांटों पर चलने में भी
अपना ही मज़ा है
कांटे देते हैं चुभन
पर खून का रिसना भी
अच्छा लगता है, कभी–कभी
मंजिल की चाहत के गुनगुने एहसास
में भी अनूठा मज़ा हैं।
किसने कहा रेगिस्तान में कुछ भी नहीं।
प्यास तो हैं।
जब मंजिल तुम हो
सफर अपने–आप ही हो जाता है सुहाना
साथ मिल बातें करने की आशा
जुगनू बन साथ चला करती हैं।
आँखों की गहराई में पैठ मन करता है
देखूँ लहरों का उतार–चढ़ाव
जिसके सीने पर तैरती हों
खिलवाड़ करती नौकाएँ
जिसके पाल पर लिखीं हों
सपनों भरी कहानियां
जहाँ आशा भरी हवाएँ
भरती हों दिशाएँ
और उसी जुम्बिश में, हिचकोले खाते
बैठे हों हम और तुम
दास्तानों का बुनते ताना–बाना
जिससे चाँद–सितारे भी
लेते हों हिम्मत जीने की।
घास की फुनगीपर–फलक पर
बैठी हैं ओस की बूँदे
वहाँ ज़िंदगी अंगड़ाई लेती है
और कहानी पैदा होती है
सफर के शुरू और अंत की।
तनहाई में याद कर लेना कभी–कभी
साया हमसफ़र का साथ होगा
खयालों में ही सही!

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