| अनुभूति में 
					लाल जी वर्मा की रचनाएँ-
 छंदमुक्त में
 अकेला
 उत्तिष्ठ भारत
 मुझमें हुँकार भर दो
 मेरे हमसफ़र
 चार छोटी कविताएँ
 समय चल पड़ा
 सुनोगी
 क्षणिकाएँ
 मुक्तक
 
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					मुझमें हुँकार भर दो 
 सागर की लहरों से नहलाया गया
 शंख हूँ मैं
 होंठ लगा मुझमें हुँकार भर दो।
 मैं कृष्ण का पांचजन्य हूँ
 मानवता भूल बैठी जिसे
 अब भी कुरुक्षेत्र की माटी में
 पड़ा हूँ प्रतीक्षा में
 उन होठों के
 जो मुझमें हुँकार भर सकें
 मेरी गूँज अब भी
 वायु–तरंगों पर विचलित
 प्रतीक्षा में हैं उन कानों की
 जो मनन कर मेरी आवाज़ ग्रहण कर सकें
 सागर की लहरों से
 नहलाया गया शंख हूँ मैं
 होंठ लगा मुझमें हुँकार भर दो।
 तुम भूल गए हो वीर–गाथाएँ
 जो बचपन में सुनी थीं,
 कुछ माता–पिता से
 कुछ प्राइमरी स्कूल के अध्यापक से
 तुम्हारे कंठ में जड़ता आ गई है
 गूँगा नहीं हो कर भी
 गूँगे बनकर रह गए हो
 मैं तुम्हें फिर से
 सुनाऊँगा वीर–गाथाएँ
 रानी झाँसी की, प्रताप की
 शेरशाह और रणजीत सिंह की
 सुनाऊँगा वीर–गाथाएँ सोमनाथ शर्मा की,
 अब्दुल हमीद और अल्बर्ट एक्का की
 जो मातृभूमि की वेदी पर
 अपने शीश चढ़ा अमर हो गए
 मेरे कंठ में वाणी फूँको
 सागर की लहरों से नहलाया गया
 शंख हूँ मैं
 होंठ लगा मुझमें हुँकार भर दो।
 
 २४ जनवरी २००६
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