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अनुभूति में लाल जी वर्मा की रचनाएँ-

छंदमुक्त में
अकेला
उत्तिष्ठ भारत
मुझमें हुँकार भर दो
मेरे हमसफ़र
चार छोटी कविताएँ
समय चल पड़ा
सुनोगी
क्षणिकाएँ
मुक्तक

 

 

मुक्तक


ओस की बूँदें फफक कर रो रहीं
तप रहीं, सूरज किरण से कह रहीं
बादलों की ओट छुप जाओ ज़रा
याद कर लें चाँदनी को हम कहीं।


मन करता विस्तृत नभ में
बन बादल मैं छा जाऊँ
बाहों में नीलम घाटी भर
किरणों की गुफा बनाऊँ।


क्यों करूँ मैं सृजन जिसका
अंत सदा विनाश
पूर्व या पश्चात मेरे
सदा जिसका ह्रास।


आज के फिर बाद कल को
पंचभूत शरीर
मिलेगा मिट्टी समर्पित,
अग्नि, गगन, समीर।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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