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 अनुभूति में 
शकुंतला बहादुर 
 
की रचनाएँ- 
दिशांतर में- 
अपने बन जाते हैं 
आकांक्षा 
मुक्ति 
सागर तीरे 
छंदमुक्त में- 
उधेड़बुन 
कैलीफोर्निया में हिमपात 
दूरियाँ 
समय 
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 आकांक्षा 
 
बँध गई थी बंधनों में मैं बहुत  
अब न बंधन कोई मुझको चाहिये  
उड़ सकूँ उन्मुक्त मैं आकाश में 
बस यही अधिकार मुझको चाहिये  
 
व्यस्त जीवन में सदा रहते हुए 
चाह कर भी मैं न जो कुछ कर सकी  
आज वह वेला सुखद है आ गई ( सेवा-निवृत्ति) 
मानसिक सन्तोष मुझको चाहिये  
 
व्यर्थ ही जीवन गँवा मैंने दिया 
यह निराशा अब न मुझको चाहिये  
स्वेच्छा से कर सकूँ जनहित यहाँ 
शान्ति मन की ही मुझे अब चाहिये  
 
लालसा यश की नहीं, धन की नहीं 
आत्मगौरव ही मुझे अब चाहिये  
प्रिय किसी का यदि कभी मैं कर सकूँ 
हर्ष का वह क्षण मुझे अब चाहिये   
 
१ सितंबर २०२२ 
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