अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में डॉ. जयजयराम आनंद की रचनाएँ-

नए दोहों में-
सन्नाटे में गाँव

दोहों में-
ताल ताल तट पर जमे
प्रदूषण और वैश्विक ताप

गीतों में-
अम्मा बापू का ऋण
आम नीम की छाँव
आँखों में तिरता है गाँव
केवल कोरे कागज़ रंगना
बहुत दिनों से
भूल गए हम गाँव
मेरे गीत
शहर में अम्मा

सुख दुख इस जीवन में
 

 

बहुत दिनों से

बहुत दिनों से
गीत नही लिख पाया

राजनीति की उठापटक में
नेताओं की है हठधर्मी
कभी दलों की अदला बदली
कभी चुनाबोँ की सरगर्मी
किस पर लिखूँ लिखूँ ना किस पर
माथा पच्ची ना कर पाया

लूटपाट बाजार गरम है
तंत्र मौन होकर है बैठा
प्रजा पिस रही गलियारों में
राजा घूमे ऐठा ऐठा
किसकी सुनूँ,सुनूँ ना किसकी
तन मन घबराया चकराया

जिनके ओठों की सच शोभा
उनका टू जीना दूभर है
रोटी रोजी कलम है जिनकी
निर्वासन उनके सिर पर है
गीत गज़ल कविता चिल्लाती
आसमान को रास न आया

११ जनवरी २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter