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अनुभूति में डॉ. जयजयराम आनंद की रचनाएँ-

नए दोहों में-
सन्नाटे में गाँव

दोहों में-
ताल ताल तट पर जमे
प्रदूषण और वैश्विक ताप

गीतों में-
अम्मा बापू का ऋण
आम नीम की छाँव
आँखों में तिरता है गाँव
केवल कोरे कागज़ रंगना
बहुत दिनों से
भूल गए हम गाँव
मेरे गीत
शहर में अम्मा

सुख दुख इस जीवन में
 

 

भूल गए हम गाँव

हवा लगी है जबसे शहरी भूल गए हम गाँव

रोजी रोटी के चक्कर में
सारे दिन हम भटके
महँगाई के गलियारों में
कदम कदम पर अटके
पोर पोर में पगी पीर से हारे तन मन पाँव

चोर उचक्के दिन दोपहरी
करते काम तमाम
तन्त्र समूचा गूंगा बहरा
प्रजातंत्र के नाम
बात बात पर कर आरोपित नहीं चूकता दाँव

कोई नहीं किसी की सुनता
अपने अपने किस्से
भूख प्यास कुंठाएँ आतीं
केवल सबके हिस्से
भटक रहीं हैं ज़िंदा लाशें भूल गईं निज ठाँव

१५ जून २००९

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