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अनुभूति में डॉ. जयजयराम आनंद की रचनाएँ-

नए दोहों में-
सन्नाटे में गाँव

दोहों में-
ताल ताल तट पर जमे
प्रदूषण और वैश्विक ताप

गीतों में-
अम्मा बापू का ऋण
आम नीम की छाँव
आँखों में तिरता है गाँव
केवल कोरे कागज़ रंगना
बहुत दिनों से
भूल गए हम गाँव
मेरे गीत
शहर में अम्मा

सुख दुख इस जीवन में
 

 

सुख दुख इस जीवन में

गीतों का शृंगार करेंगें
सुख दुःख इस जीवन में

जब से होश सँभाला मैंनें
माँ ने पाठ पढाया
गिरना उठना आगे बढ़ना
गीता सार बताया
लुका-छिपी का खेल रचेंगें
सुख दुःख इस जीवन में

बापू ने खलिहान खेत में
जगमग ज्योति जलाई
मिलीं विरासत में सौगातें
ज्यों की त्यों लौटाईं
फूँक फूँक कर कदम रखेंगे
सुख दुःख इस जीवन में

जब दुःख आए आँसू पीना
सुख में मत इतराना
राम राम कह सुख 'बनिया' को
तीते घाव सुखाना
नवगीतों का खाट बुनेंगे
सुख दुःख इस जीवन में

--११ जनवरी २०१०

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