अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में मदन मोहन अरविंद की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
उनके हुक्क भरते रहना
गम से फेरे सात करेगी
जाकर मन की गहराई में
दूर उजाले पड़ जाते हैं
सच भी कितना सच है जानें

गीतों में-
कह दो किसी और घर जाए
साहिल को अपनाना हो तो
हर दुख पर इतना भर कह ले

अंजुमन में—
अच्छा लगता है
कैद हैं साँसें
कौन जाने
चुप रहना हो
छत मैं तुम आँगन
जिंदगी के जश्न
जो वफा से
डाल हिलाकर देखो
दवा हो या ज़हर
दिन गया
दिल को बहला जाती थी
देखना चाहे इधर
दोपहर हो कि शाम
नई रंगत
पत्थरों को आइना कैसे कहूँ
पतझड़ को न देना तूल
फिर वही किस्सा पुराना
बड़ी बेजोड़ ये सौग़ात होती
भूख का मतलब
मैं चला तुम भी चलो
रात सुलाती
रोज खुले मे
वक्त की दरियादिली
वक्त ने दो ग़म दिए

वही सूरत वही साया
वो टहलते वक्त
शोर भारी हो रहा है
हाथ गैरों से मिलाया

कुंडलियों में-
पाँच मौसमी कुंडलियाँ

 

गम से फेरे सात करेगी

गम से फेरे सात करेगी तनहाई से बच के रहना
बहकी-बहकी बात करेगी तनहाई से बच के रहना

जब-जब ये करवट बदलेगी कितनी ही मीनार हिलेंगी
तूफानों को मात करेगी तनहाई से बच के रहना

लमहा-लमहा बेताबी का बेचैनी का आलम होगा
बेकाबू हालात करेगी तनहाई से बच के रहना

बंद पड़े पन्नों की स्याही बह-बह कर बाहर निकलेगी
पहलू में बरसात करेगी तनहाई से बच के रहना

इसकी जिद्दी आवाजों को चुप रहने की आदत कम है
गुस्ताखी दिन रात करेगी तनहाई से बच के रहना

२ फरवरी २०१५

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter