अग्निपथ
आओ हम सब मिलकर
जीवन मधुर करें
हर मुश्किल के माथे पर जा
साहस दीप धरें
आशीषों के द्वारे पर जा
शीश झुकाएँ अपना
संस्कृतियों के घायल मन का
सच कर दे हर सपना
टुकड़े टुकड़े हुई मनुजता
हर टुकड़े को जोड़ें
आंधी के माथे को चूमे
तूफानों को मोड़ें
वर्तमान को निर्भय कर दें
अँधियारों में चलना सीखें
भय से नहीं डरें
अग्निपथों को चल कर नापें
सावन वहाँ बिछायें
हर आँसू को मुस्काने दें
स्नेह मंत्र दोहरायें
ऊँचाई क्या रोक सकेगी
पर्वत के कन्धों की
कथा निराली होती हरदम
बलिदानी बन्दों की
संकल्पों के गाँव सदा हम
साहस के झरने बन कर के
पल पल नित्य झरें
३० मार्च २०१५
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