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दिनमान बदल
धीमे क्या अब जोर से चल
बिखर गया है छल ही छल
रिश्तों में अब क्या खोजें
जूते पहन बिना मोजे
कंधे झेल नहीं पाते
संबंधों के अब बोझे
सहयोगों की डोर जली
प्राणों की तड़पे मछली
खुद अपने दिन-मान बदल
बिखर गया है छल ही छल
क्या दिल्ली, क्या भोपाल
नंगा घूम रहा गोपाल
अपराधों के गिरवी है
न्याय करेगी क्या चौपाल
सपनों के तारे टूटे
किरणों के छाले फूटे
कैसे खिल पाएँगे पल
धीमे क्या अब जोर से चल
बिखर गया है छल ही छल
३० मार्च २०१५
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