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अनुभूति में संतोष कुमार सिंह की रचनाएँ —

विज्ञान कविताओं में-
कार्य
आर्किमिडीज सिद्धान्त
उत्प्लावन बल
प्लावन का नियम
बल
गुरुत्व केन्द्र

गीतों में-
अपना छोटा गाँव रे
इस देश को उबारें
ऐसी हवा चले
गाँव की यादें
चलें यहाँ से दूर
जग यूँ दीख रहा
जा रहा था एक दिन
धरती स्वर्ग दिखाई दे
नारी जागरण गीत
फिर कैसे दूरी हो पाए
मन जुही सा
मीत मेरे
ये बादल क्यों रूठे हैं
रूठ गई मुस्कान
श्रमिक-शक्ति

सोचते ही सोचते

शिशु गीतों में-
डॉक्टर बंदर
भालू
सूरज
हिरण

संकलन में-
ममतामयी- माँ

खिलते हुए पलाश- टेसू दहकें दोपहर

  ऐसी हवा चले

ऐसी हवा चले नफ़रत के, बादल सब पिघलें।
प्रीति के पाहुन तब मचलें।।

हृदय-सिंधु की लहर-लहर में, रंग प्यार के दीखें।
हर सुख-दुख में भी इठलाना, हम कलियों से सीखें।।
स्वारथ का जो लेप चढ़ा मन, उसको सब बदलें।
प्रीति के पाहुन तब मचलें।।

चाहत की रीती गागर भी, सब की भर जाएँ।
कटुता की बूँदें बरसें तो, अमृत बन जाएँ।।
क्रोध-अग्नि हो शांति खुशी में, दृग बूँदें बहलें।
प्रीति के पाहुन तब मचलें।।

सौरभ से भर जाएँ दिशाएँ, करे किलोलें हास।
बैर उड़े आँधी के संग-संग, इठलाए विश्वास।।
संयम के रथ पर बैठें सब, लालच से सम्हलें।
प्रीति के पाहुन तब मचलें।।

प्रेम-प्रीति की क्यारी महके, जग के हर कोने में।
बढ़े न कोई हाथ कहीं पर, शूलों को बोने में।।
होवे हृदय उदार हमेशा, हर दु:ख भी सह लें।
प्रीति के पाहुन तब मचलें।।

9 अक्तूबर 2006

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