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अनुभूति में संतोष कुमार सिंह की रचनाएँ —

नए गीत
चलें यहाँ से दूर
जग यूँ दीख रहा
फिर कैसे दूरी हो पाए
मन जुही सा
रूठ गई मुस्कान

गीतों में
अपना छोटा गाँव रे
इस देश को उबारें
ऐसी हवा चले
गाँव की यादें
जा रहा था एक दिन
धरती स्वर्ग दिखाई दे
नारी जागरण गीत
मीत मेरे
ये बादल क्यों रूठे हैं
श्रमिक-शक्ति

सोचते ही सोचते

शिशु गीतों में-
डॉक्टर बंदर
भालू
सूरज
हिरण

संकलन में
ममतामयी-माँ

 

रूठ गई मुस्कान

इंसानों के
हर चेहरे से, रूठ गई मुस्कान
ईश्वर-अल्ला कुछ तो देखो,
कैसा हुआ जहान

मकाँ बने हैं सुन्दर-सुन्दर,
लेकिन घर हैं टूट रहे
पूछा नहीं किसी ने अपने,
क्यों हैं हमसे रूठ रहे
अहंकार ने
प्रेम दिलों से, छीन लिया भगवान

हमने सड़कें चौड़ी करलीं,
सोच हो गई तंग है
धन-सम्पति तो बहुत जुटाली,
नैतिकता बदरंग है
विश्वासों को
जंग लग रही, झूठों का भी सम्मान

टी.वी. संस्कृति ने बच्चे भी,
भोले ही भरमाये हैं
बेच किताबें स्कूलों में,
अब खंजर वे लाए हैं
देख दबंगों को
निकलें अब, अनुशासन के प्रान।

देवालय में बम्ब फूटते,
मदिरालय अब सजते हैं।
देश के रक्षक संगीनों में,
घूमें डरते-डरते हैं।।
यहाँ क्रूरता,
हिंसा, नफ़रत, रोज़ चढ़ें परवान।

मसल रहे हैं लोग यहाँ पर,
अब इठलाती कलियाँ भी।
उग्रवाद ने दंश दिया है,
सिसक रही हर गलियाँ भी।।
दानवता के
हाथ हो रही, मानवता कुरबान।

२१ दिसंबर २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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