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अनुभूति में शशिकान्त गीते की रचनाएँ-

ई रचनाओं में-
इक राजा था, इक रानी थी
महानगर
मुए केंचुए
रूप रस गंधों वाले दिन
स्लेट लिखे शब्दों के

दोहों में-
असली मंजिल दूर है

गीतों में-
आसमान गुमसुम रहता है
एक टिमटिम लौ
एक टुकड़ा धूप
कम्प्यूटर रोबोट
ताँगे वाला घोड़ा
दूर अभी मंजिल है
फूलों की घाटी मे
भैंस सुनती बाँसुरी
मन माँगे ठौर
रोटी से ऐटम-बम प्यारा
समय को नाथ!

संकलन में-
चंपा- चंपा कुछ हाइकु

गंगा- धार समय की
ममतामयी- अम्मा चली गई
         माँ के सपने
रक्षाबंधन- राखी धागा सूत का
वर्षा मंगल- बूँदों ने क्या छुआ देह को
हरसिंगार- पारिजात के फूल
         हाइकु
होली है- मस्ती के फाग

 

सली मंजिल दूर है

असली मंजिल दूर है, अब तो मानुष चेत।
मूँगे-मोती के लिये, छोड़ छानना रेत।

गहरा सागर, आसमाँ, हिमगिरि- सा तू दीख।
पर मन रखना काँच-सा, नदियों से भी सीख।

बहुत कठिन है तैरना, धारा के विपरीत।
कूडा़ बहता धार में, तू धारा को जीत।

अपनी केंचुल छोड़ कर, सरका काला सर्प।
उजला अवसर देख कर, ज्यों ओछे का दर्प।

ईर्ष्या का मकडा़ बडा़, फाँसे मानुष जाल।
हड्डी तक चूसे मुआ, रहने भर दे खाल।

१२ मई २०१४

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