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अनुभूति में सुधांशु उपाध्याय की रचनाएँ— 

ई रचनाओं में-
आधी रात
जो है होनेवाला
फोटो के बाहर चिड़िया
सपना रखना

गीतों में-
आने वाले कल पर सोचो
औरत खुलती है
कथा कहें
कमीज़ के नीचे
काशी की गलिया
ख्वाबों के नए मेघ
खुसरो नहीं गुज़रती रैन
जीने के भी कई बहाने
दरी बिछाकर बैठे
नींद में जंगल
पोरस पड़ा घायल
बात से आगे

हुसैन के घोड़े

 

जीने के भी कई बहाने

पावस का घन
टूट रहा है

ये बादल के लटके झटके
सागर की आँखों में खटके
ये पानी है ये बिजली है
शीशे के दरवाजे चिटके
सहम रहा है पक्का घर यह
कुछ तो है
जो छूट रहा है

रात रात भर नीम जगी है
भरी दोपहरी आँख लगी है
जीभों पर हैं स्वाद ठिठकते
ये स्वादों की अजब ठगी है
टहनी भारी होकर हिलती
शायद कल्ला
फूट रहा है

हिला बाँध छू गई नदी है
हल्दी अक्षत बदी सुदी है
बाजारों में लुट जाते हैं
कुछ उधार कुछ नकदी है
सोई गुमटी
लूट रहा है

बिखरे हैं सरसों के दाने
साँसें बिखरी हैं सिरहाने
जीने वाले जी लेते हैं
जीने के भी कई बहाने
दिन तो पहले जैसा बैठा
तिल छाती पर
कूट रहा है।

१९ अक्तूबर २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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