| अनुभूति में अशोक चक्रधर की रचनाएँ- 
                  नई रचनाएँ- कम से कम
 कौन है ये जैनी
 तो क्या यहीं?
 नया आदमी
 फिर तो
 बौड़म जी बस में
 ससुर जी उवाच
 सिक्के की औक़ात
 होली में-होरी सर र र
 कविताओं में-बहुत पहले से भी बहुत पहले
 हास्य व्यंग्य में-गति का कसूर
 ग़रीबदास का शून्य
 जंगल गाथा
 तमाशा
 समंदर की उम्र
 हँसना रोना
 हम तो करेंगे
 और एक पत्र - फ़ोटो सहित
 स्तंभ-समस्यापूर्ति
 संकलन में-नया साल-सुविचार
 |  | तो क्या यहीं? तलब होती है बावली,क्योंकि रहती है उतावली।
 बौड़म जी नेसिगरेट ख़रीदी
 एक जनरल स्टोर से,
 और फ़ौरन लगा ली
 मुँह के छोर से।
 ख़ुशी में गुनगुनाने लगे,
 और वहीं सुलगाने लगे।
 दुकानदार ने टोका,
 सिगरेट जलाने से रोका-
 श्रीमान जी!
 मेहरबानी कीजिए,
 पीनी है तो बाहर पीजिए।
 बौड़म जी बोले-कमाल है,
 ये तो बड़ा गोलमाल है।
 पीने नहीं देते
 तो बेचते क्यों हैं?
 दुकानदार बोला-
 इसका जवाब यों है
 कि बेचते तो हम
 लोटा भी हैं,
 और बेचते
 जमालगोटा भी हैं,
 अगर इन्हें ख़रीदकर
 आप हमें निहाल करेंगे,
 तो क्या यहीं
 उनका इस्तेमाल करेंगे?
 01 फरवरी 2007 |