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कौतूहल

गर तुम्हारी हथेलियों से मैं
अपना चेहरा
ढाँप लूँ तो क्या होगा?
छू हो जाएगी
एक ललक,
तुम्हें करीने से उधेड़ने की
तुम्हें पाने की
तुम्हारे स्पर्श की आँच में पिघलेगी मेरी उत्तेजना,
और
बह जाऊँगी मैं
क्रमश: हीन-क्षीण हो
फिर तुम भी कहीं खड़े होंगे,
प्रश्न के मंच से उतरकर,
उत्तर के बाह्य द्वार पर।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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