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ज़िंदगी

जो सुलगता है उसे चुपचाप बुझाना है,
ज़िंदगी तेरे रंग में रंग जाना है।

गर पढ़कर कोई सहर का दिलासा दे,
जला के हाथ लकीरों को मिटाना है।

पोंछना है धुँधले ख़्वाबों की तस्वीर,
कोरी ही सही, हक़ीक़त से दीवार सजाना है।

गर लड़ना ही है तो खाली क्यों उतरें?
अपनी तरकश को ज़ख्मों का ख़ज़ाना है।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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