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पहली बारिश

मुरली की तान पे बौराई राधे की तरह
खिंची चली आई हूँ
बारिश तेरी आहट पे।
तेरे बूँदों की थपकियों पर थिरकता मन
जाने कितने जज़्बों को 'हरा' कर लाया है।
जैसे एक-एक बूँदें तेरी
ज़मीं को सहलाती हैं
एक-एक किस्से-कविताएँ
जो बंद थी भीतर
फूट जाती हैं।
तेरे बरसते ही
जी करता हैं मैं भी बरसूँ
भेद कुढ़न का वायुमंडल
बिजली-सी चमकूँ!
हवाओं में रच जाऊँ
धूल संग बह जाऊँ
धो डालूँ हर तपिश
गगन भेद गूँजूँ।
बारिश तेरी फुहार जब जब गुदगुदाती है
मैं जी उठती हूँ
मेरी आत्मा सिंच जाती है।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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