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अनुभूति में मन दलाल की रचनाएँ-

गीतों में-
एक बंजारापन
कान्हा का हर रास अनय है
जीवन
तेरी सदा से सम्पदा है
प्रीत के तार लगाए

 

 

 

एक बंजारापन

एक बंजारापन
एक बंजारापन

रैना जब निंदिया चुराकर
ख़ुद सोने चली जाती है
आँसुओं की परतें सारी
बिछौनों तल गली जाती हैं
तब दिनभर का डूबा डूबा
एकाकीपन से ऊबा
मन निकल पड़ा जाने किस वन
एक बंजारापन
एक बंजारापन

छल से या जग के कौशल से
समय ने छीनी जड़ कोपल से
जो ऐसे सम्बंध हुये
भटकन से अनुबंध हुये
दो कंधो पर भार चला
लिये सारा संसार चला
पर रह गया छूटा सा मन
एक बंजारापन
एक बंजारापन

हर पट अपनी चौखट है
बूँद-बूँद अपना पनघट है
ये विडम्बना किंतु बंधु है
हर घट एक नया जमघट है
अंकिंचित सब पखेरू मन के
कच्चे सारे रंग सुमन के
उड़ चले हैं दूर गगन
तोड़कर सारे बंधन
एक बंजारापन
एक बंजारापन

८ जुलाई २०१३

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