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अनुभूति में मयंक कुमार वैद्य की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
अनंत से अनंत की ओर
एक इंच मुसकान
एक कतरा धूप
जिंदा लम्हा

 

अनंत से अनंत की ओर

चंद हसीन लम्हों का साथ लिये
स्वर्णिम स्वपनों की बारात लिये
कुछ हाथों मे हाथ लिये
अपनों की प्यारी सौगात लिये
मैंचला जा रहा हूँ निरन्तर अनंत से अनंत की ओर

पग-पग
-चिरनिद्रा-में-लीन-कभी-गिरता-तो-कभी-उठ-जाता
कभी किसी को राह दिखाता कभी स्वयं को भटकाता
किसी अंधकारमय जीवन में मैं एक चिराग को उजलाता
कभी स्वयं से रुष्ट हुआ मैं कभी स्वयं पर इठलाता
कुछ खट्टी मीठी याद लिये
संग अपने हुनर की दाद लिये
पुलकित जीवन का राग लिये
भ्रमरों संग पुष्प पराग लिये
मैं चला जा रहा हूँ निरन्तर अनंत से अनंतकी ओर

राहगीर बन राह मे चलता पंछी बन उड़ जाता मैं
नई नवेली वधु प्रकृति से नित नित ब्याह रचाता मैं
जब अंतर मन कुंठित हो तो अपने ही गीत सुनाता मैं
पात- हवा -पानी सरगम दें उस पर साज़ सजाता मैं
अपने सरगम और साज़ लिये
एक मधुरिम सीआवाज़ लिये
गिरते निर्झर की तान लिये
अधरों पर कुछ मुस्कान लिये
मैं चला जा रहा हूँ निरन्तर अनंत से अनंतकी ओर

९ अप्रैल २०१२

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