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अनुभूति में मयंक कुमार वैद्य की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
अनंत से अनंत की ओर
एक इंच मुसकान
एक कतरा धूप
जिंदा लम्हा

 

जिन्दा लम्हा

हर वक्त बदलते परिवेश में,
न जाने कौन से वेष में,
एक वाकया कुछ यूँ हुआ
जो बड़ा ही अज़ीब था,
मैने अपनी बंद मुठ्ठी को खोलकर देखा तो पाया
एक जिन्दा लम्हा मेरे करीब था

मदमस्त घटाओं सी झूमती
काली स्याह रात में,
साहिल से टकराकर चीखती,
लहरों के पहलू में जलती आग मे,
यूँ लगा जैसे वहाँ मौजूद वो मेरा ही हबीब था
उनींदी सी आँखें खोलकर देखा तो पाया
एक जिन्दा लम्हा मेरे करीब था

निच्छल हृदय की गहराईयों मे घूमकर
भाव-विहल उन पुलकित चक्षुओं को चूमकर
जिसने न होकर भी अपने होने का अहसास कराया
वो एक ऐसा रकीब था
गीली रेत में छिपी सीपियों को ढूँढा तो पाया
एक जिन्दा लम्हा मेरे करीब था

९ अप्रैल २०१२

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