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अनुभूति में मयंक कुमार वैद्य की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
अनंत से अनंत की ओर
एक इंच मुसकान
एक कतरा धूप
जिंदा लम्हा

 

एक कतरा धूप

चहुँ ओर फैले घनघोर अंधकार में
भोर की अत्यंत शीतल बयार में मुझे कुछ मिला
जो समय की अंगड़ाई का प्रतिरूप था
एक साकार होते स्वप्न के अभिभूत था
मुझे जो मिला था वह था
एक कतरा धूप का

कलुषित तम से लड़ता हुआ
कल रात्रि के ह्रदय में गड़ता हुआ
जो करा रहा था अपने अस्तित्व की पहचान
जीवनपथ पर छोड़ रहा था अपने पैरों के निशान
जो स्वयं नई भोर के आरम्भ का ही रूप था
मुझे जो मिला था वह था
एक कतरा धूप का

रक्त प्रवाह को थाम देने वाली सर्द रात में
असफलता और निराशा की निरंतर सघन घात में
अपनी अनुपमता का अक्षय प्रण लिए
प्रत्येक रक्त कण में उर्जा को दृढ किये
रेखांकन किया था जिसने
तमसित निशा के अकिंचन स्वरुप का
मुझे जो मिला था वह था
एक कतरा धूप का

९ अप्रैल २०१२

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