अनुभूति में
सुदेषणा रूहान
की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
इक रिश्ते का घर
परिक्रमा
मुझे क्षमा करना
यात्रा
सत्य
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मुझे क्षमा करना
क्षमा करना मुझे ओ फूल,
जो नहीं देख पाया इस वसंत तुम्हें खिलते।
क्षमा करना तुम वसंत,
जो नहीं देख पाया
ऋतुओं के सांध्य में तुम्हारा आगमन।
मैं बन गया था वही आदमी
अब किंचित चला हूँ फिर
मनुष्य बनकर।
मैंने पिछले वसंत देखा एक स्वप्न,
और देखा कोई लाल फूल वहाँ सुगन्धित हैं।
नहीं वो पलाश थे,
सपनों के पलाश!
मैंने देखा एक अषाढ़,
रंगों का पानी के साथ बहना
और सुना था उनका कलरव,
जो मौन में खिलखिलाते थे टेसू के साथ
सपनों के टेसू!
लाल और हरे बहुत सुन्दर थे अपने आप में
वो सपनों के रंग थे वर्षा के
और नारंगी सँभला था कुछ यत्नों के साथ
जो शेष रहा इनका अप्रतिम सौंदर्य
फिर लाल मिला हरे से
और भूरा हो गया।
फिर धीरे से भूरे में,
नीले रंग मिल गए
वो काला हो गया।
और मैं अब देख हूँ भोर का स्वप्न
अशेष!
काले रंग में सब काला था।
काला उसका रक्त, काली उसकी देह,
उसके आँसू,
सब काला।
और जो दिखी टिमटिमाती पीड़ा,
तो वो हो गई रात।
और धीरे से रात जो काली थी
सितारों से भरी,
थोड़ी अलसाई और
उसने पाया स्वयं को भोर के आलिंगन में
वही काली देह,काली पीड़ा
सब सिन्दूरी हो रहे थे।
स्वप्न अब तुम जाओ।
मैं जो खोलूँ अपनी आँखें
तो पाऊँ एक क्षमा वसंत और
फूलों से,
रंग,
राग और रागिनी से
और फिर आरंभ हो जीवन का एक नया अध्याय!
३ जून २०१३
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