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अनुभूति में सुदेषणा रूहान की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
इक रिश्ते का घर
परिक्रमा
मुझे क्षमा करना
यात्रा
सत्य

 

परिक्रमा

एक भोर तुम जागोगे गहन नींद से।
एक भोर का रात के सौजन्य से होगी।
एक दीक्षा लेगी धरा अगले जीवन के लिए।
एक वृक्ष बनेगा पीपल कुछ आशीष के बाद।

तुम और मैं अनंत मार्ग से आयें हैं,
जायेंगे अनंत अलोक के परे।
देह,जन्म और मृत्यु के पीछे,
ब्रम्ह से उस तरफ।

मैं भिक्षुणी कंचन काया का क्या करूँ?
प्रेम करूँ तो रुकूँ,
अन्यथा आज्ञा दो
कि जाऊँ नए जीवन में,
एक नयी देह लिये,
नयी आस्था के साथ,
कि इस जीवन में प्रेम परस्पर होगा।

और फिर चलेंगे हम,
आदि-अनादि से विरक्त,
उस प्रकाश-पुंज की ओर,
जिसमे व्याप्त है समय,
प्रेम,और अनुगूँज
हमारे होने से।

आओ,
डरो नहीं!
छुओ इस गूँज को,
और सुनो दिव्य रंग।
उस बूढ़े युवक को,
जिसे कहते हैं-प्रकाश वर्ष,
जिसने हर जीवन में दिया है,
मुझे मेरा नाम, तुम्हारा परिचय
और तुम्हारा संबोधन मेरे लिए।

रुको नहीं!
चले आओ,
फिर एक नयी काया,
नया जीवन लिये।
तुम जहाँ भी होगे 'प्रेम'-मैं तुम्हें ढूँढ लूँगी।

३ जून २०१३

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