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मेरी माँ
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मेरी माँ

माँ बनकर ये जाना मैंने,
माँ की ममता क्या होती है,
सारे जग में सबसे सुंदर,
माँ की मूरत क्यों होती है॥

जब नन्हे-नन्हे नाज़ुक हाथों से,
तुम मुझे छूते थे. . .
कोमल-कोमल बाहों का झूला,
बना लटकते थे. . .
मै हर पल टकटकी लगाए,
तुम्हें निहारा करती थी. . .

उन आँखों में मेरा बचपन,
तस्वीर माँ की होती
थी,
माँ बनकर ये जाना मैंने,
माँ की ममता क्या होती है॥

जब मीठी-मीठी प्यारी बातें,
कानों में कहते थे,
नटखट मासूम अदाओं से,
तंग मुझे जब करते थे. . .
पकड़ के आँचल के साये,
तुम्हें छुपाया करती थी. . .

उस फैले आँचल में भी,
यादें माँ की होती थी. . .
माँ बनकर ये जाना मैंने,
माँ की ममता क्या होती है॥

देखा तुमको सीढ़ी दर सीढ़ी,
अपने कद से ऊँचे होते,
छोड़ हाथ मेरा जब तुम भी
चले कदम
बढ़ाते यों,
हो खुशी से पागल मै,
तुम्हें पुकारा करती थी,

कानों में तब माँ की बातें,
पल-पल गूँजा करती थी. . .
माँ बनकर ये जाना मैनें,
माँ की ममता क्या होती है॥

आज चले जब मुझे छोड़,
झर-झर आँसू बहते हैं,
रहे सलामत मेरे बच्चे,
हर-पल ये ही कहते हैं,
फूले-फले खुश रहे सदा,
यही दुआएँ करती हूँ. . .

मेरी हर दुआ में शामिल,
दुआएँ माँ की होती हैं. . .
माँ बनकर ये जाना
मैंने,
माँ की ममता क्या होती है॥

9 जुलाई 2007

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