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अपनी धरती
दुखों से दोस्ताना
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यों तो संबन्ध
हों ऋचाएँ वेद की

अंजुमन में-
उम्र कुछ इस तरह
घर में बैठे रहे
तेरी ज़िद
दो ग़ज़लें
धूल को चंदन
बागों में

बादल तितली धूप
मौत ज़िंदगी पर भारी है
सिमटने की हकीकत

 

यों तो संबंध

यों तो संबन्ध सहज से ही ज़माने से रहे
मन में अकुलाते मगर प्रश्न पुराने से रहे

द्वारिका जा के ही मिल आओ अगर मिलना है
अब किशन लौट के गोकुल में तो आने से रहे

बावरा बैजू भी शामिल हुआ नौरतनों मे
और फिर सारी उमर होश ठिकाने से रहे

प्यासे खेतों की पुकारों में असर हो शायद
मानसूनों को समन्दर तो बुलाने से रहे

सूखी नदियों पे बनाये हैं सभी पुल तुमने
अगले सैलाब में ये काम तो आने से रहे

अगस्त २०१०

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