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अनुभूति में अरुण मित्तल अद्भुत की रचनाएँ-

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उलझे उलझे अपने रिश्ते
ऊपर से सख़्तजान
तय सफ़र कुछ यों भी करना
देख सारे हिसाब
मुझमें इतने खोए आँसू
रौशनी का जब कभी आभास
वो धोखा दे गया

अंजुमन में--
अंधेरों में चमकता
कौन समझेगा
खुद से मिलकर
जो उजालों मे
तुम्हें झूठ से बहलाने में
सिर्फ और सिर्फ

हिसाब मत देना
 

 

उलझे उलझे अपने रिश्ते

उलझे उलझे अपने रिश्ते
जाने हैं ये कैसे रिश्ते

अक्सर बह जाते हैं यों ही
आँसू बन पलकों से रिश्ते

कोई एक निभाए कैसे
एक साथ हाँ दो से रिश्ते

न ये टूटते न जुड़ते हैं
मेरे हैं कुछ ऐसे रिश्ते

यों भी हुआ इश्क में दिल को
तोड़ गए कुछ अपने रिश्ते

खफ़ा बहुत है अरुण आजकल
बिगड़े हैं अद्भुत से रिश्ते

१ दिसंबर २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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