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अनुभूति में अरुण मित्तल अद्भुत की रचनाएँ-

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उलझे उलझे अपने रिश्ते
ऊपर से सख़्तजान
तय सफ़र कुछ यों भी करना
देख सारे हिसाब
मुझमें इतने खोए आँसू
रौशनी का जब कभी आभास
वो धोखा दे गया

अंजुमन में--
अंधेरों में चमकता
कौन समझेगा
खुद से मिलकर
जो उजालों मे
तुम्हें झूठ से बहलाने में
सिर्फ और सिर्फ

हिसाब मत देना
 

 

वो धोखा दे गया

वो धोखा दे गया हमको जरा से इक बहाने से
हमें शक उसपे था लेकिन डरे हम आज़माने से

तेरे चेहरे पे ये मासूमियत भी खूब जमती है
क़यामत आ ही जाएगी ज़रा-सा मुस्कुराने से

वहाँ इंसानियत का खून करने वाले ही तो थे
नहीं था आग का रिश्ता किसी का घर जलाने से

न ही जादूगिरी ना खेल है कोई तिलिस्मों का
यहाँ बनती है किस्मत अपने हाथों से बनाने से

तुम्हे अद्भुत से ही सारे मिले होंगे मगर हमको
शिकायत थी ज़माने से शिकायत है ज़माने से

१ दिसंबर २००८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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