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अँधेरे इस क़दर हावी हैं
ज़ुबां पर फूल होते हैं
भले ही उम्र भर
ये तो है कि
शिकायत ये कि

अंजुमन में—
इसलिए कि
डर मुझे भी लगा
तूफ़ानों की हिम्मत
थोड़ी मस्ती थोड़ा ईमान
नहीं होती
फूलों का परिवार
बड़े भाई के घर से
मुझको पत्थर अगर
विचारों पर सियासी रंग
संसद में बिल
हमारी चेतना पर

 

अँधेरे इस कदर हावी हैं

अँधेरे इस क़दर हावी हैं कुछ कहने नहीं देते
उजालों के तसब्बुर हैं कि चुप रहने नहीं देते

कोई पत्थर नहीं हैं हम कि रोना ही न आता हो
मगर हम आँसुओं को आँख से बहने नहीं देते

उधर दुनिया कि कोई ख़्वाब सच होने नहीं देती
इधर कुछ ख़्वाब हैं जो चैन से रहने नहीं देते

अजब तहज़ीब है उनके लिये बंदिश नही कोई
हमें सच बात भी लेकिन कभी कहने नहीं देते

मुहब्बत एक पुल है आस्थाओं के किनारों पर
कभी इस पुल को हम सैलाब में बहने नहीं देते

११ जून २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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