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आसमाँ में
उजाले तीरगी में
जी रहे हैं लोग
भले ही रोशनी कम हो

अंजुमन में—
अँधेरे इस क़दर हावी है
इसलिए कि
किसी का डर नहीं रहा
डर मुझे भी लगा
जिन्हें अच्छा नहीं लगता
ज़ुबां पर फूल होते है
तूफ़ानों की हिम्मत
थोड़ी मस्ती थोड़ा ईमान
नहीं होती
फूलों का परिवार
बढ़े चलिये
बड़े भाई के घर से
भले ही उम्र भर
मुझको पत्थर अगर
ये तो है कि
विचारों पर सियासी रंग
शिकायत ये कि
संसद में बिल
सभी तय कर रहे हैं

हमारे हमसफ़र भी
हमारी चेतना पर

 

विचारों पर सियासी रंग

फिर विचारों पर सियासी रंग गहराने लगे।
फिर छतों पर लाल-पीले ध्वज नज़र आने लगे।

आज अपनी ही गली में से गुज़रते डर लगा,
आज अपने ही शहर के लोग अनजाने लगे।

जान पाए तब ही कोई पास में मारा गया,
जब पुलिस वाले उठाकर लाश ले जाने लगे।

हो गईं वीरान सड़कें और कर्फ्यू लग गया,
फिर शहर के आसमां पर गिद्ध मँडराने लगे।

रंग पिछले इश्तहारों के अभी उतरे नहीं,
फिर फ़सीलों पर नये नारे लिखे जाने लगे।

अंत में ख़ामोश होकर रह गए अख़बार भी,
साज़िशों में रहबरों के नाम जब आने लगे।

१ अप्रैल २००६

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