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आसमाँ में
उजाले तीरगी में
जी रहे हैं लोग
भले ही रोशनी कम हो

अंजुमन में—
अँधेरे इस क़दर हावी है
इसलिए कि
किसी का डर नहीं रहा
डर मुझे भी लगा
जिन्हें अच्छा नहीं लगता
ज़ुबां पर फूल होते है
तूफ़ानों की हिम्मत
थोड़ी मस्ती थोड़ा ईमान
नहीं होती
फूलों का परिवार
बढ़े चलिये
बड़े भाई के घर से
भले ही उम्र भर
मुझको पत्थर अगर
ये तो है कि
विचारों पर सियासी रंग
शिकायत ये कि
संसद में बिल
सभी तय कर रहे हैं

हमारे हमसफ़र भी
हमारी चेतना पर

 

नहीं होती

इसलिए कि सीरत ही एक सी नहीं होती।
आग और पानी में दोस्ती नहीं होती।

आजकल चराग़ों से घर जलाए जाते हैं,
आजकल चराग़ो से रोशनी नहीं होती।

कोई चाहे जो समझे ये तो खोट है मुझमें,
मुझसे इन अँधेरों की आरती नहीं होती।

मुश्किलों का हिम्मत से सामना नहीं होता,
चैन से बसर उसकी ज़िंदगी नहीं होती।

कोई मेरी ग़ज़लों को आसरा नहीं देता,
सोच में अगर मेरे सादगी नहीं होती।

हाल-चाल मैं अपने क्या बताऊँ कैसा हूँ,
मेरी मुझसे फुरसत में बात ही नहीं होती।


१ अप्रैल २००६

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