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आसमाँ में
उजाले तीरगी में
जी रहे हैं लोग
भले ही रोशनी कम हो

अंजुमन में—
अँधेरे इस क़दर हावी है
इसलिए कि
किसी का डर नहीं रहा
डर मुझे भी लगा
जिन्हें अच्छा नहीं लगता
ज़ुबां पर फूल होते है
तूफ़ानों की हिम्मत
थोड़ी मस्ती थोड़ा ईमान
नहीं होती
फूलों का परिवार
बढ़े चलिये
बड़े भाई के घर से
भले ही उम्र भर
मुझको पत्थर अगर
ये तो है कि
विचारों पर सियासी रंग
शिकायत ये कि
संसद में बिल
सभी तय कर रहे हैं

हमारे हमसफ़र भी
हमारी चेतना पर

 

हमारी चेतना पर

हमारी चेतना पर आँधियाँ हावी न हो जाएँ
कहीं जुल्मों सितम सहने के हम आदी न हो जाएँ

कहीं ऐसा न हो वे भूल ही जाएँ परिंदों को
कहीं ये पेड़ कटने के लिए राज़ी न हो जाएँ

डुबो दें बीच दरिया में हमारी नाव ले जाकर
तमाशा देखने वाले कही माझी न हो जाएँ

हमें डर है अहिंसा, प्रेम, करुणा, दोस्ती, ईमां
बदलते दौर में अल्फ़ाज़ ये गाली न हो जाएँ

बड़ी मुश्किल से पहुँचे हैं उजालों की विरासत तक
अँधेरे इस विरासत में कही साझी न हो जाएँ

कहीं ये गोडसे इतिहास के नायक न हो जाएँ
कहीं मायूस इस इतिहास में गाँधी न हो जाएँ

६ जुलाई २००९

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